Unfazed by the hanging FIR and the constitution of a probe committee against the working of Bihar’s marketing cooperative federation, Biscomaun, its Chairman Sunil Singh holds a fish curry lunch for his friends at its headquarters in Patna and dares the state govt to arrest him.
“Tell the police that I would be in my office at sharp 11 am and also tell that for that for the entire month of January I would be in Patna”, Singh mocked at the rumour doing rounds in the cooperative circle that he is absconding from Patna in the fear of being arrested.
Earlier, on a letter from the Central Registrar to Bihar Registrar of Cooperative Societies, the latter constituted a five member team to probe the Provident Fund Scam of about Rs 22 crore in Bihar Marketing Cooperative, Biscomaun which is headed by Sunil Kumar Singh.
The team has been directed to submit the probe report soon. The five members include Brinder Thakur, Shashi Sekhar Sinha, Sanjay Kumar, Subash Kumar and Kundan Lal.
It is said that the provident fund deducted was not paid in the employees accounts. Biscomaun Chairman and board members are supposed to be involved in the mismanaging of the PF.
Readers would recall that earlier the employees of Biscomaun had launched an agitation over the issue. They had also written a letter urging the labor Minister to probe the matter.
It is being reported that during 1988 to 2003, the Biscomaun employees were not getting their salary when the marketing cooperative was controlled by the state government.
Sources said the PF Commissioner had lodged an FIR against the Biscomaun Chairman Sunil Kumar Singh, Vice-Chairman Gopal Giri and Managing Director.
“Since 1985 to 2002, the Biscomaun was under Administrator’s rule; in which several top-notch IAS officials of the state of the time headed the cooperative federation; if the logic of the report were to be believed it would mean filing of FIRs against giants like R K Singh, Vyasji, Amitabh Verma and many others”. There are around 35 IAS officers in the list”, said Biscomaun Chairman earlier during this year in the wake of the PF issue hogging the media headlines.
Reducing the whole charge to nothing more than a political vendetta against himself Sunil Singh said they say that I paid money to Lalu Pradad Yadav. But have they got any proof, he asked.
They also have objection to my foreign trips but you would be surprised to know that I have never claimed any TA-DA from Bicomaun; go and check the records you will find the truth, he said to this correspondent. Being on the board of several national level co-op federations, it is they who foot my bills, he explained.
बार बार जो कहा जा रहा है कि 22 करोड़ रुपये का P.F. घोटाला हुवा है ये बिल्कुल ही भ्रामक और तथ्य से परे है। लेकिन चुकी जो पूरे मसले को नही जानते और जो पब्लिक है उनके दिलों दिमाग मे यही बात आती है कि घोटाला है चुकी आज मीडिया जो खबर छापती है उन्हें सच मान लिया जाता है।
सच्चाई जबकि बिल्कुल विपरीत है जैसे कि वर्ष1975 में बिस्कोमॉन को छूट देते हुवे बिस्कोमॉन भविष्य निधि ट्रस्ट के गठन को मंजूरी दी गयी और 1.6.2017 को यानी कि बिस्कोमॉन को प्राप्त relaxation को P.F Department द्वारा वापस लिया जाना ये सवाल खड़ा करता है कि आखिर P.F. Department 40 वर्षो से कहा थी ? वापस लेने की करवाई उस वक़्त क्यों नही की गई जब सरकार द्वारा पदस्थापित Senior I.A.S Officer 2003 के पहले तक बिस्कोमॉन को एक सोने की चिड़िया बनाने में लगे रहे जबकि बिस्कोमॉन को जंग लगी हुवी संस्था बना कर 2003 में अलविदा कह गए। और 1988 से 2003 तक बिहार सरकार के दुलारे I.A.S Officer ने बिस्कोमॉन का ऐसा हाल किया कि 1996 से 2003(8 वर्षो) तक सैलरी किसी भी कर्मचारी को नही मिली। और मैं अपना पक्ष नही रख रहा हूँ बल्कि उक्त बातें पटना उच्च न्यायलय के खंडपीठ ने वर्ष 2002 में बिस्कोमॉन में की गई 1988 से 2003 के बीच की गई बर्बादी को अपने शब्दों में बयान किया गया है(LPA No-412/2002)
Biscomaun में P.F. का संचालनकर्ता एवं जवाबदेह बिस्कोमॉन भविष्यनिधि ट्रस्ट था जिसने 1975 से 2017 तक ट्रस्ट के माध्यम से कर्मचारियों का P.F का रख रखाव किया। उक्त ट्रस्ट के C.E.O Biscomaun में बिहार सरकार द्वारा पदस्थापित सीनियर I.A.S Officer होते थे और शेष सदस्य बिस्कोमॉन के नामित कर्मचारीगण खुद होते थे।
Biscomaun के बोर्ड के किसी भी मेंबर Chairman / Vice Chairman का उक्त ट्रस्ट मैं कोई रोल नही था।
ऐसा नही है कि 22 करोड़ रुपए एक दिन या एक महीना या एक साल की देनदारी है बल्कि उक्त रकम वर्षो पूर्व से चला आ रहा है जिसे पूर्व में जांच का जिम्मा P.F. Department का था जिसने अपना फर्ज इतनी ईमानदारी के साथ निभाया की उक्त 1975 से संचालित ट्रस्ट का Audit 40 वर्षो तक नही किया तथा 2018 में पूर्व से चली आ रही देनदारी को वर्तमान बोर्ड पर थोप दिया ?
सबसे गौर फरमाने वाली बात यह है कि जिन A.P Fund Commissioner(रजनी कांत सिन्हा) ने बिस्कोमॉन के खातों को seize किया है उनकी खुद की रिपोर्ट है 8 साल पुरानी जिसमे उन्होंने रिपोर्ट किया है कि उक्त बिस्कोमॉन भविष्यनिधि का ट्रस्ट का ऑडिट वर्षो से नही हुआ है तथा ट्रस्ट सही से काम नही कर रही है लेकिन क्यों चुप्पी साध ली गई कोई करवाई नही की गई इसकी भी जांच होनी चाहिए ? क्योंकि यदि पूर्व में समय समय पर P.F. Department अपने दायित्यों को समझता तो आज बिस्कोमॉन के पास ट्रस्ट द्वारा लादी गयी देनदारी 22 करोड़ न होकर कम होती।
ट्रस्ट द्वारा कटौती की गई राशि को कही इन्वेस्ट नही किया गया लेकिन समय समय पर रिटायर्ड कर्मचारियों को 8 % interest के साथ भुगतान किया। ट्रस्ट को हर महीने भविष्य निधि विभाग को रिपोर्ट भेजना होता है। क्या 40 वर्षो तक P.F. Department को ट्रस्ट द्वारा कोई रिपोर्ट नही भेजी गई ? क्या P.F. Department 40 वर्षो से उक्त घाटे में चल रही ट्रस्ट के कार्यकलाप से अनजान था ? यदि जानकारी थी तो उक्त ट्रस्ट को दी गयी 40 वर्ष पूर्व 1975 में दी गयी छूट को 2003 2002 2001 2000 में भंग क्यों नही कर दिया गया ? क्या किसी का दबाव था ? क्या इसकी जांच नही होनी चाहिए.
और भी ऐसे बहुत सवाल है जिनका जवाब नही है इसलिए सारे सहकारी संस्थान और सहकारी बंधुओ से आग्रह है की बिस्कोमॉन परिवार की लड़ाई में बिस्कोमॉन का साथ दे और Indian Cooperative के संपादक महोदय को उपरोक्त कही गयी बातों के Documentary Proof की ज़रूरत हो तो उसकी मांग बिस्कोमॉन से कर सकते है और हम चाहेंगे की उनका पोर्टल जमीनी हकीकत से सारे सहकारी भाइयों अवगत हो सके।
और जहाँ तक Dr Sunil Kumar Singh chairman Biscomaun ने क्या योगदान बिस्कोमॉन और बिहार के किसानों के लिए किया है इसका जीता जागता उदाहरण के लिए हिंदुस्तान पेपर को देखा जा सकता है जहाँ पटना ज़िला के करीब 15 प्राइवेट दुकानदार ने खाद की दुकान यह कहकर बंद कर दिया की घाटा हो रहा है जबकि सच्चाई ये है कि बिस्कोमॉन के द्वारा एमआरपी पर बेचे जा रहे खाद के चलते उनकी कालाबाज़ारी बंद हो गयी थी।
M.K.S
BISCOMAUN
इस राज्य का दुर्भाग्य है की जो व्यक्ति किसानों की सच्ची सेवा कर रहा है, उसी के विरुद्ध में भ्रष्टाचारी लोग भ्रामक प्रचार करते हैं।
इस तरह के भ्रामक प्रचार फैलाने में वैसे लोग के भ्रष्ट परिजन शामिल हैं जिनके कारण नेफेड जैसी संस्था में 2000 करोड़ रुपए का घोटाला हुआ था।
इस तरह के भ्रामक समाचार देने से माननीय उच्च न्यायालय पटना की भी अवमानना होती है क्योंकि इसी से संबंधित मामला माननीय उच्च न्यायालय में निष्पादन हो चुका है
विगत कई वर्षो से डॉ सुनील के प्रयासः एवमं सहयोग से बिस्कोमान के कार्मिकों को 1 तारीख को ही वेतन भुगतान हो जाता है
बिस्कोमान के जो भी पुराने कार्मिक हैं जिन्होंने 35 वर्ष तक कोई काम ही नहीं किया वैसे लोग ही बिस्कोमान के विरुद्ध भ्रामक प्रचार फैलाते हैं
बिस्कोमान के जितने भी पुराने कार्मिक हैं लगभग उसमें 90% लोग नकली सर्टिफिकेट पर बहाल हुए थे
डॉ सुनील में ईमानदारी ऐसी कूट-कूट कर भरी हुई है कि राज्य सरकार के बड़े-बड़े मंत्री एवमं मुलाज़िम भी उनके विरुद्ध बोलने से पहले दो गिलास पानी पीते हैं के बाद भी उन्हें हिचकी आती है।
शायद बहुत कम लोगों को पता होगा कि बिहार के मुख्यमंत्री भी डॉ सुनील के विरुद्ध बोलने से हिचकने लगते हैं जिसका मुख्य कारण है डॉ सुनील की ईमानदारी जिस पर कोई व्यक्ति अंगुली नहीं उठा सकता।
शायद बहुत कम लोगों को पता होगा कि बिहार के मुख्यमंत्री भी डॉ सुनील के विरुद्ध बोलने से हिचकने लगते हैं जिसका मुख्य कारण है डॉ सुनील की ईमानदारी जिस पर कोई व्यक्ति अंगुली नहीं उठा सकता।
इस राज्य के किसान इतने संवेदनशील है कि यदि उन्हें पता लग जाए कि डॉ सुनील के विरुद्ध कौन भ्रष्ट लोग भ्रामक प्रचार कर रहे हैं तो उनकी कुटाई राज्य के किसान उसी तरह करेंगें जैसे धान की कुटाई की जाती है।
आजादी के बाद बिहार जैसे गरीब राज्य में पहली बार किसानों को उचित मूल्य पर गुणवत्तापूर्ण उर्वरक डॉ सुनील एवं इफको के सहयोग से प्राप्त हो रहा है
बिहार जैसे गरीब राज्य में सर्वव्यापी था कि जिस समय यूरिया की जरूरत होती थी उस समय ₹500 प्रति बोरा से कम रेट पर किसी भी किसान को उर्वरक नहीं मिलता था
डॉ सुनील के ईमानदारी के बारे में अधिक जानकारी लेना हो तो आप सुदूर गांव में जाएं और वहां के ग़रीब किसान से बात करें
तपेश्वर सिंह के जमाने में बिस्कोमान का नाम भ्रष्टाचार के नाम से जाना जाता था जिसका स्वरूप डॉक्टर सुनील ने साफ बदल दिया,आज बिस्कोमान में कोई भी व्यक्ति एक रुपए भी अतिरिक्त लेने की कल्पना भी नहीं कर सकता
पूरे बिहार में हर एक चौराहे पर बिस्कोमॉन ने होडिंग लगा दिया है कि ₹1 बताइए और ₹2000 पाइए